Sunday, June 19, 2016

{ ३३१ } गोरिया करत अपन सिंगार




गोरिया करत अपन सिंगार।
बारन मां मोतिया चमकाये
रोम-रोम महकाए
भरै माँग सेंदुर से जब
दम-दम मुखड़ा दमकाए
जूड़े मां जूही कै माला
जुलुम करै रसनार
गोरिया करत अपन सिंगार।।१।।

कानन मां जगमग बाली-झूमर
गले मां हार लटकाए
लाल-लाल आंखिंन मां ड्वारा
तेहपर काजरु सजाए
गालन मां चकमक-सुरखी चमकै
दिल का कैसे देई करार
गोरिया करत अपन सिंगार।।२।।

हाथन मां चम-चम चूड़ी चमकै
होठन मां लाली सजाए
छम-छम ओहकी पायलिया बोलै
रहि-रहि गोरिया लजाए
अंखियन ते जब चलै दुधारी
फ़ाटत करेजवा हमार
गोरिया करत अपन सिंगार।।३।।

............................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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