Saturday, June 18, 2016

{ ३३० } शायद तब तक उपलब्ध गंगाजल नहीं






कहीं शान्ति का स्थल नहीं
मन विचलित, शान्त-शीतल नहीं
आँखें सन्नाटॊं सी ठहर गईं हैं
विचारों में भी बची हलचल नहीं
निस्तब्ध भटक रहा हूँ दिशा-दिशा
टटोलता हर तरफ़ कोई संभावना
पर मरुस्थल के उद्यानों में
फ़ूटती कोई कोंपल नहीं
होगा नही जन्म जब तक
फ़िर किसी भगीरथ का
शायद तब तक
उपलब्ध गँगाजल नही।।


........................................ गोपाल कृष्ण शुक्ल

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