Thursday, December 3, 2015

{ ३१५ } उन्ही से दिल लगा बैठे





फ़ाकाकशी में भी हम उनसे आशिकी कर बैठे
परवाह न की अंजाम की हाय ये क्या कर बैठे।

मस्त निगाहों के जाल में हम खुद को भूल गये
अपना मुफ़लिस दिल हाय बिन सोंचे ही दे बैठे।

शौक बहुत महँगे हैं उनके मालूम न था हमको
आशिकी में हम कंगाली का आटा गीला कर बैठे।

जानलेवा ही हुआ करता है ये आशिकी का नशा
ये जान कर भी हम उनसे ही आशिकी कर बैठे।

उनसे ही शिकवे हैं उनकी ही चाहत भी है हमको
उनसे ही दिल टूटा फ़िर उनसे मोहब्बत कर बैठे।

..................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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