Tuesday, March 24, 2015

{ ३०३ } सन्नाटा





चारो तरफ़ घुप्प अँधेरा
वातावरण में गूँज रहे हैं
चीटियों से फ़ुसफ़ुसाते शब्द
अचानक एक किरण सी चमकती
पर ऐसा क्यों लगता है कि
अभी सब किसी गहरी खोह में
अदृश्य हो जायेगा,
सिर्फ़ बचा रह जायेगा
पीड़ादायी, रेंगता हुआ सन्नाटा।।

............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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