Saturday, October 12, 2013

{ २७७ } नया संसार बसाया जाये





गमगीन दिलों के ज़ख्मों को सहलाया जाये
आओ चमन से रूठी बहारों को मनाया जाये।

टकरा के कहीं चूर-चूर न हो जायें ये आइने
आओ कि इन पत्थरों को फ़ूल बनाया जाये।

सहर होने को है मँजिल भी है बहुत करीब
मदहोश मयकशों को झकझोर जगाया जाये।

घर-घर की छतों-दरीचों में बैठे हैं साँप छुपकर
आओ बेसहारों को इस जहर से बचाया जाये।

आस के फ़लक पे आजाद परिंदे सा उड़ने को
आओ इस जहाँ में नया संसार बसाया जाये।


--------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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