Sunday, April 21, 2013

{ २६१ } जी लें सुख के दो चार पल






आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल

समय ने बढाईं जो दूरियाँ अब टल रहीं
विषम-विवशतायें हाथ अपने मल रहीं
सुधियों ने, सरोवर में खिलाये है कमल
आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल।।१।।

छोड दें ये झंझावात की गहन परछाइयाँ
आओ नापें बढ कर व्योम की ऊँचाइयाँ
अब न पास आने दें विषम-विकल पल
आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल।।२।।

रच गये हैं मिलन के छन्द गाने के लिये
संगीतमय पल प्राणों में सजाने के लिये
आओ गुनगुनायें हम इन्हे मचल-मचल
आओ सजनि, जी लें सुख के दो चार पल।।३।।


.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



2 comments:

  1. ये दो चार पल ही तो जीवन है ... वर्ना क्या जीवन ...

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  2. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
    मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा |

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