Sunday, January 6, 2013

{ २२८ } कुछ मत पूँछिये





घात पर घात है सिर्फ़ घात है, कुछ मत पूँछिये।
बडी डरावनी सियाह रात है, कुछ मत पूँछिये।

जख्म और दर्द भी देते हैं, मरहम भी लगाते हैं
यही तो उनकी खुसूसियात है, कुछ मत पूँछिये।

जाने क्यों बदल गया मिजाज मेरे हमदम का
शायद ये राज की ही बात है, कुछ मत पूँछिये।

तीखी चुभन, घुटन की हवा, कँपकँपी आ रही
उफ़्फ़, कैसी ये मुलाकात है, कुछ मत पूँछिये।

मेरे ज़हर पीने का न करो कतई भी अफ़सोस
हमको यही मिली सौगात है, कुछ मत पूँछिये।

बख्तर पहन लिया है दिल की चोटों के डर से
आगे डरावनी नाशिरात है, कुछ मत पूँछिये।

मौत से मुझे डर नहीं, पर ज़िन्दगी डराती है
ये इंसान की करामात है, कुछ मत पूँछिये।

------------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल


खुसूसियात = खूबी
बख्तर = कवच
नाशिरात = आँधियाँ


1 comment:

  1. लाजबाब लिखा हैं गुरु जी..वाह..वाह..

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