Sunday, October 7, 2012

{ २०७ } काँटों का बिछौना






पाया है जिसको उसको खोना है
कहती है दुनिया ऐसा ही होना है।

उड लो कितना भी आसमानों में
किसी दिन तो जमींदोज़ होना है।

आजमा लो चाहे कितना भी तुम
ज़िंदगी वक्त का एक खिलौना है।

चार दिन अभी हँस कर काट लो
आगे सिर्फ़ आँसुओं को ही ढोना है।

सितारों के ख्वाबों में रह लो, पर
ज़िन्दगी काँटों का ही बिछौना है।


---------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल



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