Tuesday, September 18, 2012

{ २०० } इन्तिहा ये प्यार की







अच्छी नही लगती ये फ़िज़ा मुझे तेरे बगैर
दिन-रात सताये ये ठँडी हवा मुझे तेरे बगैर।

जल रहा सारा बदन इन्तिहा है ये प्यार की
कौन बुझाएगा ये जलन बता मुझे तेरे बगैर।

बैठॊ कुछ और देर पास, तुम ही हो राजदार
अब माँगू किससे प्यार बता मुझे तेरे बगैर।

तुम्ही पर एतमाद है, तुम्ही से उम्रे-जाविदाँ
खुशी के चार पल न होंगे अता मुझे तेरे बगैर।


------------------------------------ गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment