Monday, September 17, 2012

{ १९७ } नजर लड गयी है






नजर एक महजबीं से लड गय़ी है
दिल में तीर बन कर गड गय़ी है।

कैसे हटा लें उससे हम नजर को
हाय जवानी जिद पर अड गयी है।

नावाकिफ़ थे हम दिल के हाल से
जान अब मुसीबत में पड गय़ी है।

दिल में बसी मोहब्बत की चुभन
हालाते-जाँ साँसत में पड गयी है।

अब बुला भी लो किसी हकीम को
देखो कहाँ तक मर्ज की जड गयी है।


--------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment