Sunday, September 16, 2012

{ १९५ } टूटे रिश्ते





रिश्ते जो थे अजीज दिलो-जान की तरह
वो टूट गये हैं किसी के ईमान की तरह।

नहीं मिल रहा निशान ढूँढे से अब कहीं
सभी मिलते हैं किसी अनजान की तरह।

मुसीबतों के दौर में अब पुकारूँ मैं किसे
दिल में उठ रहे सवालात तूफ़ान की तरह।

गर्द हवाएँ ढँक रही पहचानी सी सूरत को
साँय-साँय करे आलम बियाबान की तरह।

किसे खत लिखूँ किसे सुनायें हाले दिल
कोई आता नही मेरे घर मेहमान की तरह।


----------------------------- गोपाल कृष्ण शुक्ल

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