Monday, June 4, 2012

{ १७९ } नागफ़नी





रेत के कण-कण में
वीरानी के समन्दर में तैरता
खामोशी का लबादा
ओढ कर खडा है
एक नागफ़नी का पौधा।

ऊपर आसमान की तरफ़
देख कर
अपनी पूरी
आन बान और शान
के साथ
दृढ नागफ़नी का पौधा
मानो कह रहा है -

मैं अकेला नहीं हूँ
ये तन्हाई,
ये खामोशी,
ये वीरानी,
मेरे साथ है।।


....................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

No comments:

Post a Comment