Wednesday, May 16, 2012

{ १६५ } हूरे-जन्नत





खुदा का नूर हो, दिखती जन्नत की हूर हो
दिल की सदा है ये तुम्ही चश्म-ए-बद्दूर हो।

ख्वाबों में हर दिन ये ही सिला खोजते रहे
कैसे करीब आऊँ कि इन्तजार तो दूर हो।

देखूँ, आह भरूँ दम भी निकलेगा एक दिन
तमन्ना नजदीकी की पाले, पर तुम दूर हो।

डूब जाना दरिया में आँखों की रंगत देखकर
सूरत खुदा का नूर औ’ सादगी से भरपूर हो।

फ़ीकी हर मिसाल, तुम जहाँ में हो बेमिसाल
अब हो रहा एहसास, कि तुम मेरे गुरूर हो।


.............................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल

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