Saturday, March 10, 2012

{ १११ } नारी





नारी.....

राह हारी तू न हारी
थक गये पथ-धूल के
उड रहे रज-कण घनेरे
अब तक जो न मिट सके।

न थक सका है अभी तक
लक्ष्य-ध्येय का ध्रुव-तारा
तू प्रकृति है, ले चुकी है
जन्म से गति का सहारा।।


................... गोपाल कृष्ण शुक्ल

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