Thursday, March 1, 2012

{ १०६ } मोहब्बत का मंजर





तू जब मेरी दुनिया में बनकर मेरा मुकद्दर आयेगा
सच्ची मोहब्बत का मंजर दुनिया को नजर आयेगा।

अपने लबों पर तुम न लाओ चाहे मेरा नाम बार-बार
मेरा तुमसे है कोई रिश्ता, तेरे चेहरे पर उभर आयेगा।

ख्वाबों से रिश्ता और नींद से बोझिल हो जायेंगी आँखे
मुझसे इश्क करके ही तुम्हे जीने का हुनर आ पायेगा।

जरा मेरी आँखों के आइने में खुद को सजाओ - संवारो
तेरे जिस्म-दिलो-जान में सुरूर ही सुरूर उभर आयेगा।

आसमानों में लिखी तहरीर कुछ और भी धुँधली होगी
मेरी तस्वीर रहेगी आँखों में, और कुछ न नज़र आयेगा।

खूबसूरत और महकता सा एक गुलशन सजाओ दिल में
हर सुहानी शाम को खुद-ब-खुद ये भँवरा उधर आयेगा।


.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


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