Wednesday, February 22, 2012

{ ९८ } पी, शराब पी - ४






जिओ जीस्त की हर घडीजी भर के और पी, शराब पी
उठा लुत्फ़ ज़िन्दगी के हर लम्हे का और पी, शराब पी।

रख कायम हौसला, बुजदिल बनेगा तो पग-पग मौत है
अरे ओ बावले, जीना है जीस्त तो शान से पी, शराब पी।

महफ़िले जानाँ हो, मक्तल हो, या हो सागरे - मयखाना
जिस जगह भी जाओ, जब भी जाओ बस पी, शराब पी।

जिन रास्तों पर जमा है भीड उनमे मंजिल का क्या पता
खुद बनाओ राह अपने लिये फ़िर आराम से पी, शराब पी।


............................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल



महफ़िले जानाँ=प्रेमी की महफ़िल
मक्तल=कत्लगाह


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