Tuesday, February 21, 2012

{ ९७ } पी, शराब पी - ३





याद हैं इजहारे - मोहब्बत के पल जिसमे भी पी, शराब पी।
उन पलों को अपनी याद में जिन्दा रख और पी, शराब पी।

याद दिल में बनाये हूँ जालिम की हासिल करूँ उसका दिल
उसे अपना दिलबर बनाने के लिये मैंने खूब पी, शराब पी।

ऐ जालिम इतनी बेरुखी से न पेश आ दुखता है मेरा दिल
जान ले लेंगी मेरी दूरियाँ तेरी, आ पास आ, पी शराब पी।

मत रख गिला अपने दिलबर से, बेसबब नुक्साँ होगा
अब तखसीसे - मरज यही है, आ पास बैठ, पी, शराब पी।

हर बात जहर सी लगती है, जमाने से भी मिलते जख्म
न हो अफ़सोस, सँभला रहे दिल इसलिये पी, शराब पी।


.................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


तखसीसे - मरज=रोग का निदान


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