Sunday, February 19, 2012

{ ९४ } अजीज यादे





खुश्बू तेरे बदन की मेरा पीछा किये जाती है
तेरी अजीज यादें मेरी उमर बढाये जाती हैं।

हम तडपते हुए उदासी के समन्दर हो गये
खामोश निगाहें मेरी धडकने बढाये जाती हैं।

कहते हैं लोग सपना सुबह का सच बोलता
शब करवटॊं में फ़ज़र सपने सजाये जाती है।

अब तो शायद मै अपने हश्र को भी तरस जाऊँ
कमबख्त मौत भी हरबार मुँह चिढाये जाती है।

तेरा आशियाना भी मुझसे बहुत दूर तो है मगर
वस्ल होगा जरूर, रोज शबे-हिज्र बताये जाती है।


.................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


फ़ज़र-प्रातःकाल
शबे-हिज्रे=विरह रात्रि

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