Sunday, November 6, 2011

{ ६२ } फिर भी दिल तो है पागल-दीवाना



दोज़ख सी इस दुनिया को दिल की तकलीफ़ें क्या बताना
भर ही जायेंगे धीरे-धीरे, हैं ज़ख्म कितने, क्या दिखाना।

काँटों में उलझ कर ये दमन तिनका-तिनका सा हो गया
सुबुकती-रोती हैं आहें भी, दिल हो गया दर्द का खजाना।

मासूम दिल के एहसास का समन्दर चुपचाप ही बहा करता
आँखों के ये अश्क मोती हैं, इनको हर वक्त क्या लुटाना।

मोहब्बत में मिली चोट, हुस्न ने दी है फ़िर इश्क को मात
बेवफ़ाई कहो या कुछ कहो, पर मोहब्बत को क्या भुलाना।

मोहब्बत की चाल टेढी, इसपर क्या हँसना और क्या रोना
बोलना तो बोलना भी क्या, जान जायेगा खुद ही जमाना।

अफ़सोस, कोई भी पढता नही है मेरे दिल की इबारत को
बरबाद हुए इश्क मोहब्बत में, उस पर बेदर्द है जमाना।

खुशियाँ हरदम टिकती नहीं, बदलती यार की भी निगाहें
मिले हैं ज़ख्म गहरे-गहरे, पर हमको प्यार ही है लुटाना।

कुछ-कुछ खारा, कुछ-कुछ मीठा आशिक माशूक का रिश्ता
दर्द मिले हैं भारी-भारी, फ़िर भी दिल तो है पागल-दीवाना।


.................................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल


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