Friday, October 14, 2011

{ ५६ } वो नज़ारे कहाँ गए






ये कैसा बियाबान है वो नज़ारे कहाँ गए
वो गुलशन कहाँ हैं, वो सितारे कहाँ गए|

उड़ - उड़ के बैठ चुकी है गर्द भी राह की
दोस्तों के काफिलों के हरकारे कहाँ गए|

छाया हर तरफ अमावस का अँधियारा है
उजली चाँदनी रातों के सितारे कहाँ गए|

नजर नहीं आती अब कहीं यारों की सूरते
वो बातों, वो मुलाकातों के नज़ारे कहाँ गए|

वो चांदनी-सूरज, दिलों का प्यार नहीं रहा
शब्द केवल शेष हैं, अर्थ बेचारे कहाँ गए|


.......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


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