Saturday, October 1, 2011

{ ५३ } किस तरह जिया








आज को किस तरह से जिया हमने
रिश्तों में बस फासला किया हमने|

चिराग की लौ से परवाना जल गया
उफ़, सिर्फ अफसोस भर किया हमने|

गर चाही कुछ भी मदद कभी किसी ने
फ़ेरी नजर और किनारा किया हमने|

चाह कर भी हम नही हो सके किसी के
उम्र भर साथ का तमाशा किया हमने|

गुल नहीं किस्मत में कैसे चमन महके
दामन पर काँटे ही सजाया किया हमने|

मेहनत छोडी मुफलिसी में ही जीते रहे
और तकदीर को ही कोसा किया हमने|

इस जिन्दगी में क्या हासिल किया हमने
जिन्दगी को यूँ ही तो जाया किया हमने|


......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल


2 comments:

  1. उफ़! सिर्फ अफ़सोस भर किया हमने....
    कितनी गहरी बात...
    जानदार अशआर गोपाल भईया...
    सादर...

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