Thursday, June 30, 2011

{ ४३ } इश्क के बगैर







ज़िन्दगी बेनूर हो चुकी है इश्क के बगैर,

अब तो दिन गुजर रहे हैं, इश्क के बगैर।


बहुतों ने दिया है हौसला अपने इश्क का,

पर मायूस किया, जी रहा इश्क के बगैर।


मुझको भी एहसास है इश्क मे बेवफ़ाई का,

पर उम्मीदे-वफ़ा में जी रहा, इश्क के बगैर।


जेहन से यादें अब उसकी कभी जाती नहीं,

आँख भी डबडबाई जाती है, इश्क के बगैर।


छा रहे मेरे दिल पर देखो गम के ही बादल,

नही आ रहा अब चैनों-सुकूँ, इश्क के बगैर।


आओ न, आ जाओ न, अब आ भी जाओ,

बीते नही ये गमे-जीस्त, तेरे इश्क के बगैर।



......................................................... गोपाल कृष्ण शुक्ल




2 comments:

  1. Bahut sundar !
    जेहन से यादें अब उसकी कभी जाती नहीं,
    आँख भी डबडबाई जाती है, इश्क के बगैर।

    Bahut mushkil sa lagta hai jeena,
    Par jee hi raha hun Ishq ke bagair !

    आओ न, आ जाओ न, अब आ भी जाओ,

    No words to say, but I can feel it ! Great Poetry !

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  2. वाह शुक्ल जी

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