Monday, June 6, 2011

{ ४० } सुर्ख गुलाब







नैनो मे नीर है, अनकहे प्यार की पीर है,

हर आईने मे छिपी प्यार की ही तस्वीर है।


लौट आयी हर खुशी, मस्ती रंगीनी अपनी,

प्यार ने ही बदल दी देखो मेरी तकदीर है।


बन्द आँखों से इश्क को पहलू में अपने देखा,

ये ख्वाब हुए सब हकीकत, यही मेरी जागीर है।


इश्क मे ऐसा डूबा कि होश भी खोना पडा मुझे ,

रंगीनियों मे तबदील हो गई देखो मेरी तद्बीर है।


और भी बहुत खूबरू देखे है इस जहाँ मे हमने,

मेरे इश्क की नफ़ासत, सब से अलग शमशीर है।


देखो महकता सुर्ख गुलाब मेरे घर पर भेजा है,

ये उसी की है शरारत, इश्क मेरा बहुत शरीर है।



.............................................................. गोपाल कृष्ण शुक्ल



१- तदबीर = कोशिश

२- खूबरू = खूबसूरत

३- नफ़ासत = नजाकत

४- शमसीर = तलवार

५- शरीर = चंचल

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